आचार्य श्री १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से और चतुर्थ पट्ठाधीश आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज की जन्मस्थली अतिशयकारी अतिशय क्षेत्र तिगोड़ा जी मे भव्य, मनोरम और विशाल जिनमंदिर स्थित है जो ८०० वर्ष की प्राचीनता …
पढ़ना जारी रखेंयह एक अतिशय क्षेत्र है। ग्राम में चार दिगम्बर जैन मंदिर है चिन्तामणी पार्श्वनाथ मंदिर के भोयरें में चिन्तामणी पार्श्वनाथ की कत्थई वर्ग की 4 फुट 10 इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है, सिर के ऊपर सप्तफणावलि है। यह प्रतिमा …
पढ़ना जारी रखेंयह अतिशय क्षेत्र एक पहाडी पर है। जिस पर एक जैन मंदिर है तथा 11 मन्दिर जीर्णशीर्ण दशा में विद्यमान है। पर्वत को तलहटी में भी दो मंदिर है। पर्वत पर स्थित मंदिर में मूलनायक के रूप में सेठ पाड़ाशाह …
पढ़ना जारी रखेंयह एक अतिशय क्षेत्र है, यहाँ के मूलनायक शीतलनाथजी की प्रतिमा रामकुण्ड से निकाली गयी थी। जो कि श्वेत पाषाण की 3 फुट 2 इंच अवगाहना वाली प्रतिमा है। यह प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। यह प्रतिमा लगभग 7वीं-8वीं शताब्दी …
पढ़ना जारी रखेंजैन तीर्थ नारायणा के पास ही एवं दूधू से 11 कि.मी. दूर अवस्थित यह तीर्थ क्षेत्र मध्य काल में साहित्य निर्माण और उसके प्रचार का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां हिन्दी के जैन कवि छीतरमल ठोलिया हुए है जिन्होने होली …
पढ़ना जारी रखेंनारायणा नगर अतिप्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व का रहा है, इस नगर पर महमूद गजनवी द्वारा आक्रमण भी हुआ था। चैहान वंश के शासन काल में इस नगर में जैन धर्म पल्लवित और पोषित होकर जैन धर्म का एक बड़ा केन्द्र …
पढ़ना जारी रखेंश्री देवारी पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर अतिशय क्षेत्र, देबारीयहाँ भगवान पार्श्वनाथ की 13.5 फीट ऊँची श्याम वर्ण की अतिशय युक्त मनोहारी प्रतिमा है। यहाँ आधुनिक अतिथि गृह है तथा 40 बिस्तरों का अत्याधुनिक सुविधाओं से पूर्ण आँख का अस्पताल है। …
पढ़ना जारी रखेंगई। प्रतिमा अतिशययुक्त एवं प्रभाविक होने के साथ ही क्षेत्र से सम्बन्धित अनेक अतिशय है। प्राचीन ग्रन्थों तथा काव्यों में क्षेत्र व मूलनायक की प्राचीनता का वर्णन मिलता है। तेरहवीं शताब्द के विद्वान यतिवर मदनकीर्ति ने अपने ग्रन्थ शासन चतुर्विशतिक …
पढ़ना जारी रखेंयहां पुराने किले में स्थित लगभग 15 सौ वर्ष प्राचीन श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के निर्माण में श्रावक श्रेष्ठी श्री भगवानदास पोरवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी जिनालय को किले वाला मंदिर कहा जाता है, श्री किला मंदिर …
पढ़ना जारी रखेंयह अतिशय क्षेत्र एक पहाडी पर है।मंदिर में मूल नायक भगवान आदिनाथ की 3 फीट 8 इंच अवगाहनावाली संवत् 1548 में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा अवस्थित है। वेदी पर मूलनायक के अतिरिक्त आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की एवं 3 धातु …
पढ़ना जारी रखेंपुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से यह क्षेत्र अति महत्वपूर्ण है। पुरातात्विक शोध में प्राचीन भवन 1225 वर्ष पुराना है एवं जिन प्रतिमाएँ 10वीं एवं 11वीं शताब्दी की है। किंवदन्ती है कि, भगवान महावीर के समवशरण स्थल बरही में देवों द्वारा …
पढ़ना जारी रखेंबघेरा ग्राम डाई नदी के किनारे बसा है जिसका पुरातात्विक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। यहाँ खुदाई में प्रायः 11वीं से 13वीं शताब्दी की जैन मूर्तियाँ जो कि श्वेत एवं श्याम वर्ण के पाषाण की है, प्राप्त हुई है जिन्हें …
पढ़ना जारी रखेंकुंडल की परंपरा 1600 साल से अधिक पुरानी है। यह माना जाता है कि भगवान पार्श्वनाथ और महावीर का समवशरण यहां आया था और अंतिम श्रुतकेवली पूजा श्रीधर मुनि ने यहां मोक्ष प्राप्त किया। ऐसा कहा जाता है कि किसी …
पढ़ना जारी रखेंयह अतिशय क्षेत्र अरावली पर्वतमाला में बनास नदी के तट पर उत्तुंग पहाड़ी पर स्थित है। भीलवाड़ा से 55 कि.मी. पूर्व की ओर तथा पश्चिम रेल्वे की अजमेर खण्ड़वा रेल्वे लाइन पर विजयनगर से 42 कि.मी. शाहपुरा तथा वहाँ से …
पढ़ना जारी रखेंयह अतिशय क्षेत्र जंगल के मध्य एक तालाब के किनारे स्थित है। क्षेत्र पर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन पार्श्वनाथ भगवान की अतिशययुक्त प्रतिमा है। यह मन्दिर दक्षिणमुखी है। प्रतिमा पर लिखी प्रशस्ति अनुसार प्रतिमा संवत् 1100 की प्रतिष्ठित है। क्षेत्र …
पढ़ना जारी रखेंआसोज बदी षष्ठी के दिन जिला टोंक से 11 कि.मी. कोटा मार्ग पर एक खेत की मेढ़ पर भगवान चन्द्रप्रभु की सफेद पाषाण की 11 इंच की प्रतिमा प्रकट हुई। यह मनोज्ञ प्रतिमा संभवतः सं. 135 की है। मूर्ति के …
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