भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का इतिहास
देश भर में स्थित विभिन्न दिगम्बर जैन तीर्थों की देखरेकरके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए किसी संगठन की आवश्यकता है, यह विचार उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पूर्वसन् 1899 ई.में मुंबई निवासी दानवीर, जैनकुलभूषण, तीर्थ भक्तसेठ माणिकचंद हिराचंदजवेरी के मन में सबसे पहले उदित हुआ ।
सेठ साहब मुंबई प्रांतीय दिगम्बर जैनसभा के सर्वेसर्वा थे। अपने संकल्प को साकार करने के लिए उन्होंने उसी सभा में तीर्थ रक्षा विभाग की स्थापना की तथा समीपस्थ शत्रुंजय,तारंगा और पावागढ़ आदि क्षेत्रों पर जीणोद्धार एवं व्यवस्था संबंधी कार्य प्रारम्भ कराये ।यह व्यवस्था सेठ माणिकचंदजी के विराट संकल्पों की पूर्ति नहीं कर पाई । इतने बड़े देश में फैले हुए अनगिनत दिगम्बर जैन तीर्थों की रक्षा के लिए एक स्वतंत्र संस्था की आवश्यकता उनके दूरदर्शी मन में प्रखरता से उभरती रही ।
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अधिवेशनों के अवसर पर जवेरी जी ने अपने पूज्य तीथों के विधिवत संरक्षण और संचालन की आवश्यकता समाज के सामने प्राथमिकता के रूप में प्रस्तुत की। उनके विचारों को समाज की सहमति प्राप्त हुई और इस लक्ष्य कीपूर्ति के प्रति समाज में एक उत्साह भरा वातावरण बनने लगा ।
22 अक्टूबर 1902 को
कमेटी की स्थापना
सन् 1900 में व्यापारिक व्यस्तताओं से अपने आपको मुक्त करके सेठ साहब अपनी रुचि के अनुसार तीर्थक्षेत्रों का संगठन करने और उनकी अच्छी से अच्छी व्यवस्था बनाने के लिए पूरी लगन के साथ जुट गये । अनेक अवसरों पर अनेक स्थानों पर उन्होंने तीर्थों की समस्याओं से समाज को परिचित कराया और उनके समाधान के लिए एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना का वातावरण तैयारकिया । दो वर्ष के भीतर ही सेठ साहब को अपने दीर्घ प्रयास की सफलता के लिए अनुकूल अवसर प्राप्त हो गया विक्रम संवत्1959 में कार्तिक वदी पंचमी से दसवीं तक, तदनुसार 22-10-1902 से 26-10-1902तक भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा का सातवाँ वार्षिक अधिवेशन मथुरा में आयोजित हुआ । इस अधिवेशन में मुंबई से सेठ माणिकचन्दजी अपने साथ सेठ रामचन्द्रनाथा जी, सेठ गुरुमुखराय, पंडित धन्नालालजी औरपंडित जवाहर लाल जी शास्त्री आदि अनेक सहयोगियों को लेकर उपस्थित हुए । पंडित गोपालदास जी बरैया भी उस अधिवेशन में पहुँचे ।
सेठ माणिकचन्दजी नेतीर्थक्षेत्रों की दयनीय स्थिति का बखान करते हुए उनकी सेवा-सम्हाल के लिए सामाजिकसंगठन की आवश्यकता पर अत्यन्त मार्मिक भाषण दिया । उसी समय पंडितगोपालदासजीबरैया के प्रस्ताव परसेठ माणिकचंदजीज़वेरी(मुंबई), श्री बाबू देवकुमारजी रईस आराऔर मुंशी चम्पतरायजी के समर्थन से 22 अक्टूबर 1902 को’भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का गठन हुआ। इस कमेटी के 51सभासद सेठ माणिकचंदजी के प्रस्ताव परमनोनीत किये गये । सेठ माणिकचंदजीस्वयं कमेटी के संस्थापक महामंत्री बनाये गये । सेठ चुन्नीलाल झावेरचन्द औरलालारघुनाथदास सरनो, सहायक महामंत्री नियुक्त किये गये । इसके पूर्व जब से बम्बई प्रांतिक दिगम्बर जैन सभा ने अपने अंतर्गत तीर्थरक्षा विभाग प्रारम्भ कियाथा तभी से श्री चुन्नीलालझावेरचन्द तीर्थक्षेत्रों के कायों में रुचि ले रहे थे ।लगभग दस वर्ष तक महासभा के वार्षिक अधिवेशन मथुरा में ही होते रहे ।
सन्1904में सहायक महामंत्री लाला बनारसीदासजी के आग्रहपूर्ण प्रयत्नों से महासभा का 10वाँ वार्षिक अधिवेशन दिसंबर के महीने में अम्बालाछावनी में हुआ । इस अधिवेशन में प्रथम बैठककी अध्यक्षता लाला सलेकचन्द जी रईस नजीबाबाद ने की । दूसरे दिन 29 दिसम्बर1904 को मथुरा से सेठ द्वारकादासजी अधिवेशन में भाग लेने के लिए अम्बाला पधारे ।उनकी शोभायात्रा बड़ी शान-बान से निकाली गई। वही इस वर्ष महासभा के अध्यक्ष चुने गये थे।इस समय तक तीर्थक्षेत्र कमेटी की स्थापना के तीन वर्ष पूरे हो रहे थे। समाजने उसकेकार्यों का अवलोकन किया और उन्हें संतोषप्रद पाकर कमेटी की सराहना की ।
उसी अधिवेशन में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के संबंध में महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया ।
वह प्रस्ताव इस प्रकार है :’प्रस्ताव नं.10, अष्टम वर्ष की दुरुस्ती में महासभा तसदीक करती है कि कमेटी जो तीर्थक्षेत्रों की निगरानी के वास्ते महासभा के सातवें वर्ष में नियत हुई थी,वह बदस्तूर कायम रहे और उसके कार्यकर्ता भी वे ही रहें तथा महासभा अधिकारदेती है कि कमेटी अपनी नियमावली अपने ही मेम्बरों से मंजूर कराकर कार्यवाही करे।
तब जाकर तीर्थक्षेत्र कमेटी की स्वतंत्रनियमावली का निर्माण हुआ और उसे स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त हुआ । सेठ जी गहरी रुचि लेकर तीर्थों की व्यवस्था देखनेलगे, जहाँ भी किसी क्षेत्र पर कोई विपत्ति आतीया कोई समस्या खड़ी होती, अविलम्ब वहाँ पहुँचकर सेठ माणिकचन्दजी उसका समाधान करते थे। शिखरजी में उपरैलीबीसपंथी कोठी का चार्ज कमेटी को मिलने में कुछ बाधाएं आ रही थी । सेठसाहब स्वयं वहाँ गये और उन्होंने चार्ज प्राप्त कराया ।
एक बार जब शिखरजी केपर्वत पर अंग्रेजों के रिहायसी बंगले बनवाने की योजना बनी, सेठ साहब ने उसके विरोध के लिए शिखरजी का दौरा किया और कमिश्नर से लेकर वायसराय तकसमाज का विरोध प्रदर्शित करके वह योजना समाप्त कराने में सफल हुए ।सेठ माणिकचंद हीराचंद जी जवेरी इस कमेटी केस्वप्नदृष्टा संस्थापक अध्यक्ष तो थे ही, वे ही इस संस्था के प्राण भी थे ।
स्थापनाकाल में समाज ने या महासभा ने इस कमेटी को कोई फण्ड उपलब्ध नहीं कराया था। दानवीर जवेरी जी ने अपनी उदारता और प्रबंध पटुता से उस अंकुर को ऐसा सींचा, उसकीसुरक्षा का ऐसा पुख्ता प्रबंध कियाकि वह छोटी सी संस्था आज एक विशाल छायादार वृक्ष की तरह, देशभर के सभी जाने-अनजाने तीर्थों को अपना संरक्षण देनेकी क्षमता लेकर खड़ी है ।जवेरी जी ने चार वर्ष तक एक मुनीम रखकर कमेटी का सारा पत्राचारऔर हिसाब-किताब अपनी पेढ़ी पर ही रखा । प्रारम्भ में लाल रंग का एक छोटा साबस्ता ही इस कमेटी का कार्य साधन था । चार ही वर्ष में जवेरी जी के परिश्रम सेकमेटी का कार्य इतना बढ़ गया कि एक पृथक कार्यालय उसके लिए आवश्यक लगने लगा ।
WHO WE ARE
Give Dry Called Unto
From it Sign Darkness
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Proin molestie, odio id consectetur elementum, enim eros dignissim
1 अगस्त, 1906 को
हीराबाग में कार्यालय की स्थापना
एक दिन सेठ माणिकचन्दजी ने बाबू शीतलप्रसाद जी से कहा कि महासभा के अधिवेशन में भारवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की स्थापना स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए की गई थी । कमेटी का कारबार अभी तक महामंत्री के नाते हमअपनी दुकान से संचालित कर रहे हैं । शिखरजी का बीसपंथी कोठी का मुकदमा कमेटी को लड़ना पड़ा है जिससे उस पर लगभग आठ हजार रुपए का कर्जा हो गया है । अभी कमेटी का काम बम्बई प्रांतिक दिगम्बर जैन सभा के द्वारा ही चलाया जारहा है इसलिए यह कर्जा भी उसी सभा पर है । इसी कर्ज की स्थिति के कारण सभाके महामंत्री पंडित गोपालदासजीबरैया सभा का हिसाब पास कराने में संकोच कररहे हैं । ऐसी स्थिति में यदि आप थोड़ा समय दें और कमेटी के कार्यालय कीदेखरेख की जिम्मेदारी ले सकें, तो भारतवर्षीयदिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का कार्यालय हीराबाग में स्थापित कर दिया जाये । तब आवश्यकतानुसार प्रबंधक आदिकी नियुक्तिकरके तीर्थों का काम सुचारु ढंग से कराया जाये । कर्ज का उचित जमाखर्च हो जाये, ताकि बम्बई प्रांतिक सभा का हिसाब पास कराया जा सके । हमारी दुकान पर तीर्थों के जो खाते हैं, वे भी कमेटी के कार्यालय में स्थानांतरित कर दिये जाएँ। बाबू शीतलप्रसाद जी ने इस सुझाव की सराहना की और स्वयं भी कमेटी के कार्यालय में प्रतिदिन समय देना स्वीकार किया । इस प्रकार 1 अगस्त,1906 के दिन तीर्थक्षेत्र कमेटी का कार्यालय हीराबाग के हॉल में स्थापित हुआ, जहाँ वह अबतक चल रहा है।
MEET OUR LEGISLATIVE
Our Elected
Representatives
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip
तीर्थक्षेत्र
आंचलिक समितियों का गठन
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की नियमावली की धारा 11 केअनुसार कमेटी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किसी अंचल, किसी एक प्रदेश अथवाएकाधिक प्रदेशों को मिलाकर अंचलीय समितियों के गठन का प्रावधान है, यह समितियां उस अंचल में कमेटी के समस्त सदस्यों द्वारा गठित की जाती है ।आंचलिक समितियों के लिए भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की पदाधिकारीपरिषद द्वारा एक नियमावली स्वीकृत की गई है जिसके अनुसार कमेटी के अध्यक्ष केचुनाव के 6 महीने के भीतर अंचलीय समिति के अध्यक्षों का चुनाव होने का प्रावधानहे । तदनुसार समय-समय पर आंचलिक समिति के
अध्यक्षों के चुनाव होते रहे है ।
वर्तमान में भी राजस्थान अंचल, तमिलनाडु, पांडिचेरी, केरल एवं आंध्रप्रदेशअचल, पूर्वाचल, महाराष्ट्र अंचल, गुजरात अंचल एवं मध्यांचल समितियों केअध्यक्षों के चुनाव सम्पन्न हुए है।
तीर्थक्षेत्र सर्वेक्षण योजना
इस योजना के अंतर्गत क्षेत्र की चल-अचल सम्पत्ति और स्वामित्व सिद्ध करनेवाले दस्तावेजों, ग्राम पंचायत के संपति कर के कागज, सनद, सोने-चांदीकी मूर्ति तथा वस्तुओं की सूची, शिलालेख, अंकेक्षित तुलन पत्र (हिसाब किताब),न्यास अधिनियम केअंतर्गत हुए पंजीकरण प्रमाण-पत्रट की सत्य प्रतिलिपियों के साथ, इसके लिएछपाये गये तीर्थ सर्वेक्षण फार्म को भरकर संबंधित कागजातों के साथ तैयार कियाजाता है । महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के तीर्थक्षेत्रों का सर्वेक्षण करने के बादमध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया गया है । कई क्षेत्रों का सर्वेक्षण होना बाकीहै । कुछ नये क्षेत्र सम्बद्ध हुए हैं उनका भी सर्वेक्षण होना है जिसका प्रयास चल रहा है।
धर्मशाला
कार्य और कार्यालय
मुंबई स्थित हीराबाग धर्मशाला में सेठ माणिकचंदहीराचंद ट्रस्ट की ओर सेभारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं ट्रस्ट के कार्यालय के लिए नि:शुल्करूप से स्थान उपलब्ध कराया हुआ है। इतना ही कमेटी के स्थापनाकाल से इस ट्रस्टकी ओर से रु. 5000/- की राशि तीर्थक्षेत्र कमेटी को आवर्तक व्यय हेतु प्रदान की जा रही है ।
सन् 1970 में इसका जीर्णोद्धार कराया गया था उसके बाद गत वर्ष पूर्वअध्यक्ष श्री नरेश कुमार सेठी के अध्यक्षीय कार्यकाल में इसका जीर्णोद्धार कराकरउसे वातानुकूलित करके नयेफर्नीचर से सुसज्जित किया गया है। रेकॉर्ड रूम कोआवश्यकतानुसार नया फर्नीचर खरीदकर सुसज्जित कराकर उसमें सभी आवश्यकअभिलेख को सुरक्षित रखा गया है।
सेठ हुकमचंदजी
सेठ हुकमचंदजी कासलीवाल का परिचय
इंदौर। दुनिया भर में प्रसिद्ध और विवादास्पद संत ओशो यानी रजनीश ने एक प्रवचन में इंदौर के सर सेठ हुकुमचंद का जिक्र बड़े ही रोचक अंदाज में किया था। ओशो ने उन्हें उस समय के दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बताया था। उस जमाने में सेठ हुकुमचंद के नाम का डंका इंदौर से लेकर लन्दन के स्टॉक एक्सचेंज तक बजता था। उनकी आलीशान हवेली आज भी उनके गौरव की कहानी कहती है।14 जुलाई को सेठ हुकुमचंद का जन्मदिन है।।
– इंदौर के सर सेठ हुकुमचंद का नाम भारत की पहली पीढ़ी के उद्योगपतियों में लिया जाता है। उन्होंने सन 1917 में कोलकाता में देश की पहली भारतीय जूट मिल की स्थापना की थी। कोलकाता में उनकी एक स्टील मिल भी थी। इसके अलावा उन्होंने इंदौर में तीन कपड़ा मिलें (राजकुमार, कल्याणमल और हुकुमचंद मिल )और एक शेविंगब्लेड बनाने का कारखाना भी लगाया था। इंदौर की हुकुमचंद मिल उस जमाने की सबसे आधुनिक कपड़ा मिल थी।
– 1940 के दशक में उन्होंने मुंबई में वल्कन के नाम से एक साधारण बीमा कंपनी की स्थापना की थी। उज्जैन में भी उनकी एक कपड़ा मिल थी। इसके अलावा इंदौर,खंडवा, सेंधवा और भीकनगांव में जीनिंग और प्रोसेसिंगइकाइयाँ भी थीं।
– उनके कारोबार और उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आचार्य रजनीश, ओशो ने अपने एक प्रवचन में उन्हें उस समय के दुनिया
के सबसे अमीर लोगों में से एक बताया था। इसका जिक्र ओशोबाइबिल नामक किताब के आठवे खंड में है। इसमें ये भी जिक्र है कि सेठ हुकुमचंद के पास सोने की रोल्सरॉयस कार थी। इस कार के कुछ फोटो आज भी ऑटोमोबाइल्स की कुछ वेबसाइटों पर देखे जा सकते है। उन्होंने भगवान महावीर की रथयात्रा के लिए सोने का एक रथ भी बनवाया था।
– उनके रसूख का आलम ये था कि लंदनस्टाक एक्सचेंज के दलालों को जब ये पता चलता था कि वे किसी कंपनी के शेयर खरीद रहें हैं तो उस कंपनी के शेयर के भाव आसमान छूने लगते थे। आजादी के पहले उनकी गिनती टाटा और बिड़ला के बराबर होती थी।इंदौर के महाराजा होलकर अपने दरबार में उन्हें अपने साथ की कुर्सी पर बैठाते थे।तत्कालीन होलकर राजा के कहने पर उन्होंने अंग्रेजों को करोड़ों रूपए का कर्जा बिना ब्याज के दिया था। इसके चलते अंग्रेजों ने उन्हें सर और महाराजा होलकर ने राजा राव की उपाधि से सम्मानित किया था।
– भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बनारस का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, इंदौर का कस्तूरबाग्राम, नसिया धर्मशाला, प्रेमदेवी अस्पताल और कांच मंदिर और दिल्ली के लेडीहार्डिंगमेडिकलकॉलेज सहित देश भर में 200 से ज्यादा स्कूल,कॉलेज, मंदिर, धर्मशाला, अस्पताल और होस्टल बनाने के लिए उन्होंने दान किया था। एक आकलन के अनुसार 1950 तक उन्होंने करीब 80 लाख रुपए का दान किया था।
– इंडेक्सिंग और इन्फ्लेशनरेट के आधार इसकी गणना की जाए तो ये रकम आज के 4200 करोड़ के बराबर होती है। उनका महल किसी राजा महाराजा की तरह था। इसके भीतर सोने की नक्काशी की गई है। उनके वंशज आज भी यहीं रहते हैं। मूल फर्म सेठ हुकुमचंदसरूपचंद प्राइवेट लिमिटेड अभी भी कायम है। अपनी उद्यमिता, दूरदृष्टि और नेतृत्व से दुनिया भर में अपनी धाक जमाने वाले इस महान उद्योगपति का जिक्र केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों में देश के महान उद्योगपतियों में किया गया है।
सर सेठ हुकुमचंद का यह अमूल्य योगदान है
एक समय था जब इंदौर मिलों के लिए जाना जाता था। कई मिलें थी और इसी के कारण टेक्सटाइल में शहर का नाम देशव्यापी स्तर पर था। आज इंदौर व्यावसायिक रूप से जितना समृद्ध और विकसित हुआ है, उसमें सर सेठ हुकुमचंद का बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
उन्होंने सूती उद्योग की शुरुआत की थी। उन्हें कॉटनकिंग कहा जाता था। इस उद्योग के लिए उन्होंने इंग्लैड से मशीनें मंगाई थी। उनका शहर के आर्थिक विकास में तो योगदान था ही, साथ ही सामाजिक क्षेत्र में उनका योगदान था।
मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के सम्मेलन में जब महात्मा गांधी इंदौर आए थे, इसी सम्मेलन में उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की घोषणा की थी। तब सर सेठ हुकुमचंद ने समिति को सहयोग भी दिया था। उन्हीं के निमंत्रण पर महात्मा गांधी उनके घर भी गए थे। यहीं गांधीजी के कहने पर सर सेठ हुकुमचंद ने बहुत बड़ी ज़मीन दान दी थी जहां कस्तूरबाग्राम बनाया गया। आज यह महिलाओं के शैक्षणिक-सामाजिक उत्थान का बड़ा केंद्र है।
जहां तक मिलों का सवाल है तो यहां की एक मिल में मशहूर चित्रकार एम.एफ. हुसैन के पिता टाइम कीपर की नौकरी किया करते थे। एम.एफ. हुसैन ने न केवल होलकरों को खूबसूरत पेंटिंग्स की हैं बल्कि उन्होंने सर सेठ हुकुमचंद के रेखांकन और पेंटिंग्स बनाई थी जो आज धरोहर है।
पदाधिकारीगण
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के
भूतपूर्व ववर्तमान पदाधिकारीगण
सम्मेदाचल का विकास
साहू शांति प्रसाद जी के कार्यकाल में ही शिखरजी क्षेत्र पर श्वेताम्बर भाईयों के साथ हमारा उग्रतम विवाद चला । उस संकटकाल में श्रीमान् साहूजी की सूझ-बूझ, प्रभाव, धीरज तथा उदारता कमेटी के लिए और समस्त दिगम्बर जैन समाज के लिए, देवी वरदान की तरह महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। उस समय श्वेताम्बरों ने अनेक प्रकार के प्रभाव डालकर, बिहार शासन के साथ, पवित्र सम्मेदाचल पर्वत के संबंध में एकपक्षीय अनुबंध (एग्रीमेन्ट) कर लिया था । साहू शांतिप्रसाद जी ने इसका शक्त विरोध किया।
Jackson Franco for US
Ideological Leader ForYouth Generation
Phasellus finibus ut felis sed suscipit. Donec gravida vel libero ac eleifend. Nullam in justo mattis libero pharetra aliquet nec eget sem. Pellentesque ullamcorper ullamcorper est quis tincidunt. Nullam ut fringilla velit. Nam quis orci ac leo lacinia accumsan quis non dui