नाम एवं पता
श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र - अहार जी
श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र – अहारजी तहसील – बलदेवगढ़, जिला – टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिन – 472001 फोन नं. – 07683-224474
नालछा
क्षेत्र का महत्व एवं ऐतिहासिकता
यहाँ भगवान शान्तिनाथ का एक विशाल मंदिर है, जिसमें मूलनायक भगवान शांतिनाथ की 12 फुट ऊँची अत्यन्त सौम्य खड्गासन प्रतिमा है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर एक प्राचीन शांतिनाथ भगवान के मंदिर जिसका निर्माण सन् 1046 में हुआ था, उसी पर बना है तथा मूल नायक की मूर्ति प्राचीन मंदिर की ही है। यहाँ हस्तलिखित ग्रन्थों का एक विशाल शास्त्र भण्डार भी है, इसमें अनेक अप्रकाशित एवं अनुपलब्ध शास्त्र विद्यमान है। यहाँ एक प्राचीन जल घड़ी है, उसी के अनुसार यहाँ घण्टे बजाये जाते है। झालावाड और झालरापाटन के मध्य सड़क किनारे नसिंयाजी है, इसमें बायी ओर की वेदी में हल्के लाल वर्ण की पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। झालरापाटन के संबंध में अनेक किवदन्तियाँ है, एक किवदन्ती है कि, यहाँ प्राचीन काल में 108 मंदिर थे, जिनकी घन्टियाँ बजा करती थी। अतः इस नगर का नाम झालरापाटन पड़ गया। इस नगर का नाम चन्द्रावती या और इसके बीच में से चन्द्रभागा नदी बहती थी।
प्रबन्ध व्यवस्था
श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन नसियां, विराटनगर। अध्यक्ष – श्री छालूलालजी पाटनी (07432-241972 ट्रस्टी – श्री राजेन्द्रकुमार बागडिया (07532-240526)
आवागमन के साधन
रेल्वे स्टेशन – झालावाड रोड – 2.8 कि.मी.। बस स्टैण्ड – उपलब्ध। पहुँचने का सरलतम साधन – कोटा, झालावाड, अजमेर, जयपुर,इन्दौर से सड़क मार्ग से टैक्सी या बस।
उपलब्ध सुविधाएँ
धर्मशाला – लक्ष्मणलाल दिगम्बर जैन धर्मशाला – 4 कमरे एवं एक
हाल औषधालय – उपलब्ध विद्यालय – उपलब्ध।
मेला तथा उत्सव
वार्षिक मेला शरद पुर्णिमा को भरता है।
नालछा
क्षेत्र का महत्व एवं ऐतिहासिकता
कागदीपुरा (नालछा) में प्रागैतिहासिक काल से मुगलकाल तक के खण्डहरों के अवशेष विद्यमान है। प्राचीनतम अवशेषों के रूप में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की छठी शताब्दी की पद्मासन प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में है। यहां सन् 2007 मे खुदाई में भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा, भगवान महावीर की स्लेटी पत्थर की प्रतिमा तथा दो लांछन विहीन तीर्थकर प्रतिमाएं प्राप्त हुई है। यहां कलियुग के कालिदास कहे जाने वाले पंडित आशाधर द्वारा स्थापित नेमिनाथ जिनालय, साहित्य मंदिर एवं विद्यापीठ के अवशेष प्राप्त हुए है।
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उपलब्ध सुविधाएं
श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र
क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ
आवास (मय स्नानगृह) – 20, (बिना स्नानगृह) – 150, हाल – 3 (यात्री क्षमता – 200), यात्री ठहराने की कुल क्षमता – 1000, भोजनशाला – सशुल्क अनुरोध पर, औषधालय – उपलब्ध (आर्युवेदिक), पुस्तकालय – उपलब्ध, , विद्यालय – उपलब्ध (संस्कृत विद्यालय), छात्रावास – व्रती आश्रम)।
आवागमन के साधन
रेल्वे स्टेशन – मऊरानीपुर नगर – 62 कि.मी.,
ललितपुर – 83 कि.मी, झांसी – 120 कि.मी.।
बस स्टैण्ड – बलदेवगढ़ – 10 कि.मी., टीकमगढ़ – 25 कि.मी.।
पहुँचने का सरलतम मार्ग – सड़क मार्ग टीकमगढ़ से आहार जी।
समीपस्थ तीर्थ क्षेत्र
पपौरा जी – 22 कि.मी.,द्रोणगिरि– 56 कि.मी.,खजुराहो – 125 कि.मी., श्री फलहौडी- बड़ागाँव – 30 कि.मी.,ओरछा – 110 कि.मी., कुण्डेश्वर – 30 कि.मी.।
प्रबन्ध व्यवस्था
संस्था प्रबन्धकारिणी समिति – अहार जी (सिद्ध क्षेत्र अहार जी)
अध्यक्ष – डॉ.. शिखरचन्द जी लार (07683-224036)।
महामंत्री – श्री जयकुमार शास्त्री (07683-242634)।
प्रबन्धक – श्री विरेन्द्रकुमार जैन (07683-224474)।
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का इतिहास
देश भर में दूरदूर तक स्थित अपने दिगम्बर जैन तीर्थयों की सेवा-सम्हाल करके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए किसी संगठन की आवश्यकता है , यह विचार उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पूर्वसन् 1899 ई. में, मुंबई निवासी दानवीर, जैन कुलभूषण, तीर्थ भक्त, सेठ माणिकचंद हिराचंद जवेरी के मन में सबसे पहले उदित हुआ ।