नाम एवं पता
श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र - अहार जी
श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र – अहारजी तहसील – बलदेवगढ़, जिला – टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिन – 472001 फोन नं. – 07683-224474
फलहोडी – बड़ागाँव
क्षेत्र का महत्व एवं ऐतिहासिकता
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में पपौरा जी से 25 कि.मी. पूर्व में कल-कल करती सरिता धसान नदी‘ के तट पर है। यह क्षेत्र विन्ध्यांचल पर्वत श्रृंखला की कोटिशिला पर स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीनतम तपस्या स्थली एवं निर्वाण स्थली है। पुराण साहित्य में इस तीर्थ को किसी ने फलहोडी तो किसी ने बड़ागाँव एवं किसी ने फलहोडी बड़ागाँव कहा है जबकि यह नाम एक ही स्थान के है। इस क्षेत्र में साढे तीन करोड मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया है। यह क्षेत्र बुन्देलखण्ड के तीर्थ क्षेत्रो का केन्द्र है इसके चारो और 25 कि.मी. के अन्तराल में प्राचीन जिन मंदिर एवं तीर्थ क्षेत्र स्थित है। जब इसके पुरातत्व एवं इतिहास पर दृष्टिपात किया जाता है तोअनेक ऐसे तथ्य मिलते है जो इसे सिद्ध क्षेत्र भूमि सिद्ध करते है।जिसमें सर्वप्रथम है सिद्ध गुफा। इसी प्रकार सिद्धों का झरना, जैनतरा तालाब, कोटि पहाड जैसे संस्कृति तथा कला का आभास कराते है। टाटीबेर बाबडी, बजनी शिला एवं संग्रहालय में संजोई गई अनगिनत खण्डित मूर्तियाँ, मानस्तम्भ आदि सिद्ध क्षेत्र को स्वयं सिद्ध क्षेत्र करते है।
उपलब्ध सुविधाएं
श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र
क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ
हाल – 2 (यात्री क्षमता – 150),गेस्ट हाउस – 1विद्यालय – है पुस्तकालय -उपलब्ध (लगभग 2000 पुस्तके)।
आवागमन के साधन
रेल्वे स्टेशन – – 75 कि.मी.।
बस स्टैण्ड -बड़ा गाँव – आधा कि.मी.।
पहुँचने का सरलतम मार्ग – टीकमगढ़ से सागर – राजमार्ग (प्रति घंटा बस सेवा उपलब्ध)।
समीपस्थ तीर्थ क्षेत्र
अहारजी – 25 कि.मी., पपौरा जी – 25 कि.मी.,
द्रोणगिरिजी – 35 कि.मी.,नवागढ़ – 10 कि.मी.।
प्रबन्ध व्यवस्था
संस्था – श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र फलहोडी, बड़ागाँव प्रबन्धकारिणी समिति
अध्यक्ष – श्री हुकुमचंद हटैया (जैन) (07683-257077, 9926859556)।
मंत्री – श्री शाह मुन्नालाल (07683-257278, 9977016880)।
कोषाध्यक्ष – पटु. राजाराम समर्रा (07683-257345)।
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भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का इतिहास
देश भर में दूरदूर तक स्थित अपने दिगम्बर जैन तीर्थयों की सेवा-सम्हाल करके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए किसी संगठन की आवश्यकता है , यह विचार उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पूर्वसन् 1899 ई. में, मुंबई निवासी दानवीर, जैन कुलभूषण, तीर्थ भक्त, सेठ माणिकचंद हिराचंद जवेरी के मन में सबसे पहले उदित हुआ ।
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