अयोध्या में सौ करोड़ में बनेगा भगवान आदिनाथ का मंदिर,
पांच एकड़ जमीन देगी सरकार
१००८ भगवान ऋषभदेव की जन्मस्थली अयोध्या का विकास हस्तिनापुर के जंबू द्वीप की तर्ज पर होगा। जंबू द्वीप से जुड़ीं ज्ञानमती माता जी के निर्देशन में दिगंबर जैन अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी इस पर कार्य कर रही है। 100 करोड़ से अधिक की लागत से मंदिर निर्माण की तैयारी है। लखनऊ के आर्किटेक्ट मंदिर का मास्टर प्लान तैयार कर रहे हैं।
दिगंबर जैन अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष पीठाधीश स्वामी श्री रविंद्र कीर्ति जी ने बताया कि ज्ञानमती माताजी वर्ष 1995 से अयोध्या के विकास के लिए कार्य कर रही हैं। नौ मंदिरों का अयोध्या में निर्माण किया जा चुका है। अब अंतिम चरण में आदिनाथ तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान की जन्मस्थली का विकास कार्य प्रगति पर है।
समिति के सचिव डॉ. जीवन प्रकाश ने बताया कि भगवान श्रीराम के मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर आदिनाथ भगवान के मंदिर का निर्माण किया जाएगा। होली के आसपास कार्य आरंभ होने की संभावना है। मंत्री श्री मनोज जैन के अनुसार जैनतीर्थ को विकसित करने में केंद्र सरकार पांच एकड़ भूमि देने की तैयारी कर रही है। जल्द ही प्रधानमंत्री इसकी घोषणा कर सकते हैं। जैन समाज के पास अभी सात एकड़ भूमि है।
जैन समाज का शास्वत तीर्थ अयोध्या
अयोध्या को जैन समाज का शास्वत तीर्थ माना जाता है। इस तीर्थ पर ही जैन समाज के 24 तीर्थंकर जन्म लेते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चतुर्थकाल में हुन्डावसर्प्रिणी काल के प्रभाव से अयोध्या में पांच तीर्थंकरों ने जन्म लिया। इसमें आदिनाथ तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, भगवान अजितनाथ, भगवान अभिनंदननाथ, भगवान सुमतिनाथ, भगवान अनंतनाथ जी रहे। मंत्री श्री मनोज जैन ने बताया कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर की खुदाई के दौरान भी जैन मंदिर से जुड़े अवशेष प्राप्त हुए थे।
चरण स्थानों का होगा जीर्णोद्धार
दिगंबर जैन अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी के मंत्री श्री मनोज जैन ने बताया कि पांच तीर्थंकरों के चरण स्थानों का भी विकास किया जाएगा। इसके लिए समिति के द्वारा तैयारी की जा रही है। आने वाले समय में जैन धर्म प्रेमियों के साथ अन्य सभी के लिए अयोध्या एक अलग धार्मिक स्वरूप नजर आएगा।
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
www.tirthkshetracommittee.com
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का इतिहास
देश भर में दूरदूर तक स्थित अपने दिगम्बर जैन तीर्थयों की सेवा-सम्हाल करके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए किसी संगठन की आवश्यकता है , यह विचार उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पूर्वसन् 1899 ई. में, मुंबई निवासी दानवीर, जैन कुलभूषण, तीर्थ भक्त, सेठ माणिकचंद हिराचंद जवेरी के मन में सबसे पहले उदित हुआ ।