पावापुरी

नाम एवं पता

श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, पावापुरी

श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, पावापुरी,पो. – पावापुरी,
तह. – गिरियक,जिला- नालंदा (बिहार),
पिन – 803115 फोन नं. – 06112‘262746,
मो.-09234143054

पावापुरी

क्षेत्र का महत्व एवं ऐतिहासिकता

24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी प्राचीन सिद्ध क्षेत्र है।जिस स्थान पर भगवान को निर्वाण प्राप्त हुआ था, वहाँ अब एक विशाल सरोवरबना हुआ है, जिसके मध्य में श्वेत संगमरमर से बना जल मंदिर है। जल मंदिर के सामने समवसरण मन्दिर बना हुआ है।
जल मन्दिर के निकट ही पावापुरी सिद्धक्षेत्र दिगम्बर जैन कार्यालय है, यहाँ पर सात मन्दिरों का समूह है। इसमें बड़े मन्दिर में भगवान महावीर की साढ़े तीन फुट अवगाहना वाली श्वेत वर्ण प्रतिमा हैं। शेष छह मन्दिरों में भगवान महावीर तथा अन्य तीर्थकरों की भी प्रतिमाएँ विराजमान है।

उपलब्ध सुविधाएं

श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र

क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ

आवास कमरे – 120, (यात्री क्षमता – 200), यात्री ठहराने की कुल क्षमता – 2500, भोजनशाला – उपलब्ध हैं, धर्मशाला – 2 (आर्युवेदिक), औषधालय – उपलब्ध हैं, विद्यालय – उपलब्ध हैं।

आवागमन के साधन

रेल्वे स्टेशन – पावापुरी हाल्ट – 11 कि.मी.।बस स्टैण्ड – बिहार शरीफ – 12 कि.मी.। पहुँचने का सरलतम मार्ग – पटना से 95 कि.मी., गया से 85 कि.मी.।

समीपस्थ तीर्थ क्षेत्र

कुण्डलपुर – 24 कि.मी, राजगिर – 40 कि.मी., गुणाँवा – 23 कि.मी., मन्दारगिर – 255 कि.मी.।

प्रबन्ध व्यवस्था

बिहार राज्य प्रादेशिक दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
मंत्री -श्री अजयकुमार जैन (0612-5526075,
09334396920)
अ. मंत्री – श्री विमलकुमार जैन, पटना (09934087001)
प्रबन्धक – श्री जयकुमार जैन (092341-43854)

तीर्थक्षेत्र की वेबसाइट
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
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धर्मशाला आरक्षित करें
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तीर्थक्षेत्र के लिए दान करें
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निकटतम प्रमुख नगर:
पटना - 95 कि.मी., गया - 85 कि.मी.।
प्रमुख विशेषताएँ:
जल मन्दिर के निकट ही पावापुरी सिद्धक्षेत्र दिगम्बर जैन कार्यालय है, यहाँ पर सात मन्दिरों का समूह है

भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी

भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का इतिहास

देश भर में दूरदूर तक स्थित अपने दिगम्बर जैन तीर्थयों की सेवा-सम्हाल करके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए किसी संगठन की आवश्यकता है , यह विचार उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पूर्वसन् 1899 ई. में, मुंबई निवासी दानवीर, जैन कुलभूषण, तीर्थ भक्त, सेठ माणिकचंद हिराचंद जवेरी के मन में सबसे पहले उदित हुआ ।


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