द्रोणगिरि पर्वत से गुरूदत्त मुनि के साथ साढे आठ करोड मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया है। पर्वत पर जाने के लिये 170 सीढियां बनी हुई है। पर्वत पर 38 जिनालय एवं तीन गुफाएँ है। पर्वत के पास ही दो कुण्ड …
पढ़ना जारी रखेंइस क्षेत्र पर भगवान महावीर की 11.25 फीट ऊँची खड्गासन 9 टन पीतल की विश्व की प्रथम मूर्ति है यह मूर्ति अति मनोहारी एवं चमत्कारिक है। मन्दिर के शिखर की ऊॅचाई भूतल से 111 फीट है। क्षेत्र पर भगवान पार्श्वनाथ …
पढ़ना जारी रखेंरेवा-कावेरी नदियों के संगम पर स्थित सिद्ध क्षेत्र से दो चक्रवर्ती, 10 कामदेव व साढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष गये हैं। भट्टा्रक महेन्द्रकीर्ति ने संवत् 1935 में स्वप्न पाकर वनों में भ्रमण किया फलस्वरूप भगवान चन्द्रप्रभु एवं आदिनाथ की अति …
पढ़ना जारी रखेंप्राचीन रेवा नदी (नर्मदा नदी) के तट पर स्थित सिद्ध क्षेत्र नेमावर एवं इसके आसपास के क्षेत्र में अनादिकाल के अनेक विशालकाय पुरातत्वीय अवशेष मौजूद है।रावण के पुत्र सहित साढ़े पाँच करोड़ मुनिराज इस स्थली से मोक्ष पधारे है।यहाँ नर्मदा …
पढ़ना जारी रखेंमध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में पपौरा जी से 25 कि.मी. पूर्व में कल-कल करती सरिता धसान नदी‘ के तट पर है। यह क्षेत्र विन्ध्यांचल पर्वत श्रृंखला की कोटिशिला पर स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीनतम तपस्या स्थली एवं निर्वाण स्थली है। …
पढ़ना जारी रखेंप्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं सुरम्य पहाडियों की तलहटी में पलाश एवं घने वृक्षों की छाया में घिरे एवं आज पूरी तरह खण्डहरों का गाँव बन चुके दिगम्बर जैनअतिशय क्षेत्र बजरंगगढ़ में किले के नीचे नदी के तट पर पाडाशाह …
पढ़ना जारी रखेंबुन्देलखण्ड क्षेत्र में विन्ध्यांचल पर्वतों के मध्य विशाल सरोवर अनेक वृक्षों एवं अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य से सुशोभित सुन्दर गोल पहाड़ी पर 80 फीट की चहारदीवारी या कोट में स्थित प्राचीन क्षेत्र श्री गोलाकोट जी कला तथा साधना का अद्वितीय केन्द्र …
पढ़ना जारी रखेंयहाँ भगवान शान्तिनाथ का एक विशाल मंदिर है, जिसमें मूलनायक भगवान शांतिनाथ की 12 फुट ऊँची अत्यन्त सौम्य खड्गासन प्रतिमा है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर एक प्राचीन शांतिनाथ भगवान के मंदिर जिसका निर्माण सन् 1046 में हुआ …
पढ़ना जारी रखेंक्षेत्र पर स्थित 8 जिन मन्दिरों में 13वीं एवं 14वीं शताब्दी की मनोज्ञ प्रतिमाएँ एवं 3 नवीन जिनालय है। विद्धानों के मतानुसार यहाँ चेलना नदी के किनारे पावा की पहाड़ी से श्री स्वर्णभद्र आदि मुनि मोक्ष गये। पहाड़ी के शिखर …
पढ़ना जारी रखेंलगभग 2900 वर्ष प्राचीन यह महान तीर्थ क्षेत्र भगवान पार्श्वनाथ की समवशरणभूमि है साथ ही वीतरागी साधुओं की तपोभूमि और उनके निर्वाण स्थल होने से यहाँ का कण-कण वंदनीय है। इस तपोभूमि से मुनिन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, वरदत्त,गुणदत्त, और सायरदत्त पंचमुनि राजों …
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