प्राचीन रेवा नदी (नर्मदा नदी) के तट पर स्थित सिद्ध क्षेत्र नेमावर एवं इसके आसपास के क्षेत्र में अनादिकाल के अनेक विशालकाय पुरातत्वीय अवशेष मौजूद है।रावण के पुत्र सहित साढ़े पाँच करोड़ मुनिराज इस स्थली से मोक्ष पधारे है।यहाँ नर्मदा …
पढ़ना जारी रखेंमध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में पपौरा जी से 25 कि.मी. पूर्व में कल-कल करती सरिता धसान नदी‘ के तट पर है। यह क्षेत्र विन्ध्यांचल पर्वत श्रृंखला की कोटिशिला पर स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीनतम तपस्या स्थली एवं निर्वाण स्थली है। …
पढ़ना जारी रखेंनवोदित अतिशययुक्त इस तीर्थक्षेत्र पर आकर्षक पंच पहाडी पर 24 फुट ऊँचाई पर कमलासन भगवान महावीर स्वामी की 15 फुट की पद्मासन प्रतिमा, वासुपूज्य भगवान, मल्लिनाथ भगवान, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ भगवान की पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान है। इन वेदियों के दोनों …
पढ़ना जारी रखेंयह क्षेत्र सोलापुर-हैदराबाद हाइवे पर सोलापुर से आगे मुरूम मोड़ से 9 कि.मी. अन्दर है। यहां श्री पार्श्वनाथ की अतिशययुक्त प्रतिमा विराजमान है।देश भर में दूरदूर तक स्थित अपने दिगम्बर जैन तीर्थयों की सेवा-सम्हाल करके उन्हें एक संयोजित व्यवस्था के …
पढ़ना जारी रखेंमहाभारत कालीन ऐतिहासिक विराट नगरी जयपुर से 85 कि.मी. की दूरी पर राजमार्ग संख्या 13 पर स्थित अरावली पर्वत के नैसर्गिक सौन्दर्य से घिरी यह प्राचीन नगरी जैन, बौद्ध, सनातन सभी धर्मो की धरोहर को अपने में समेटे हुए है। …
पढ़ना जारी रखेंक्षेत्र पर स्थित 8 जिन मन्दिरों में 13वीं एवं 14वीं शताब्दी की मनोज्ञ प्रतिमाएँ एवं 3 नवीन जिनालय है। विद्धानों के मतानुसार यहाँ चेलना नदी के किनारे पावा की पहाड़ी से श्री स्वर्णभद्र आदि मुनि मोक्ष गये। पहाड़ी के शिखर …
पढ़ना जारी रखेंलगभग 2900 वर्ष प्राचीन यह महान तीर्थ क्षेत्र भगवान पार्श्वनाथ की समवशरणभूमि है साथ ही वीतरागी साधुओं की तपोभूमि और उनके निर्वाण स्थल होने से यहाँ का कण-कण वंदनीय है। इस तपोभूमि से मुनिन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, वरदत्त,गुणदत्त, और सायरदत्त पंचमुनि राजों …
पढ़ना जारी रखेंबुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित इस अहारग्राम में भगवान मल्लिनाथ के तीर्थकाल में सत्रहवें कामदेव मदनकुमार (नलराज) एवं महावीर स्वामी के तीर्थकाल में आठवें केवली बिस्कवल ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां लगभग …
पढ़ना जारी रखेंबुन्देलखण्ड के इस महत्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र में स्थित इस मंदिर के दो भाग है आगे वाला भाग बड़ा मंदिर कहलाता है, पीछे भाग में चौबीसी है बड़ा मंदिर अधिक प्राचीन है इसके एक स्तम्भ पर सं. 1350 का शिलालेख है इस …
पढ़ना जारी रखेंकागदीपुरा (नालछा) में प्रागैतिहासिक काल से मुगलकाल तक के खण्डहरों के अवशेष विद्यमान है। प्राचीनतम अवशेषों के रूप में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की छठी शताब्दी की पद्मासन प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में है। यहां सन् 2007 मे खुदाई में भगवान आदिनाथ …
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